Reseña del libro "Kaaragar Evam Bandi Jeevan (en Hindi)"
अपराधी को तीन स्तरों से गुजरना होता है पुलिस-न्यायालय-कारगार। कारगर की उत्तपत्ति- कानून तोड़ने वालों के प्रति समाज की प्रतिक्रया के रूप में हुई है। अपराध पीड़ितों में भय और प्रतिशोध कम करने, अपराधी को दंडित करने व सुधार की भावना कारागार में समाहित है। सम्प्रति कारागार अपने मूल उद्देश्यों से भटक गए हैं। कारागार में अनियमितताएँ, कर्मियों की लापरवाहियां, गुटबन्दी, आपसी सँघर्ष, रंगदारी, मोबाइल-धमकियां, मिलीभगत, बीमारी के बहाने अस्पताल में आराम, खराब भोजन, विचाराधीन बन्दियों के सर्बाधिक प्रतिशत, छापेमारी में आपत्तिजनक बस्तुओं की निरंतरता, हिरासती-मौतें, आत्महत्याएं, चिकित्सा की लचर व्यवस्था आदि की प्रतिक्रिया भूख हड़ताल, कर्मियों को बंधक बनाने, हिंसात्मक वारदातों के रूप में होती है। कानूनविदों का कहना है कि good work हेतु पुलिस द्वारा छोटे-मोटे अपराधों में गिरफ्तारियों से करागरों में अधिक भीड़-भाड़ बढ़ रही है। ऐसे जाने कितने लाखों आरोपी कारागार में सड़ रहे हैं, जिनके मुकदमों की सुनवाई में वर्षों लग जातें हैं। जिंदगी सलाख़ों के पीछे बर्बाद हो जाने के बाद बेगुनाह घोषित किये जाने से क्या लाभ है? यदि विचाराधीन बन्दी दोषमुक्त पाए जात&